cancellation of special session in punjab

पंजाब में विशेष सत्र का रद्द होना

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cancellation of special session in punjab

cancellation of special session in punjab : पंजाब के राजनीतिक इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जब राज्यपाल ने कैबिनेट की ओर से प्रस्तावित विधानसभा सत्र की अनुमति को कुछ घंटे बाद ही वापस ले लिया। इसके बाद बयानों के जो वार हो रहे हैं, वे पूरे मामले को किसी ओर ही तरफ लेकर जा रहे हैं। यह सवाल जायज है कि विश्वास मत हासिल करने के लिए एक दिन के विशेष सत्र को बुलाकर आम आदमी पार्टी की सरकार आखिर क्या साबित करनी चाहती है। जबकि वह पहले से पूर्ण बहुमत में है। भाजपा पर ऑपरेशन लोटस के जरिए आप विधायकों को खरीद कर सरकार गिराने का उसका आरोप पहले ही संदेहास्पद हो गया है, क्योंकि हर कोई यह पूछ रहा है कि सिर्फ दो विधायकों वाली भाजपा आखिर यह सब कैसे कर लेगी? आप के आरोप में राजनीति सूंघी जा रही है। यह भी कहा जा रहा है कि इस मामले को ज्यादा से ज्यादा तूल देने की योजना के तहत मान सरकार ने विशेष सत्र बुलाने की योजना बनाई थी। अब राज्यपाल ने इसकी मंजूरी से इनकार करके संविधान के हवाले से कहा है कि विश्वास मत हासिल करने के लिए विशेष सत्र बुलाने का कोई प्रावधान नहीं है। वैसे भी यह सत्र सत्ता और विपक्ष दोनों की जरूरत को पूरा नहीं करता है, यानी इससे राज्य को कोई फायदा नहीं होना है, तब इसकी मंजूरी क्यों दी जाए।

आप सरकार ने अब राज्यपाल पर जिस प्रकार के आरोप लगाए हैं, वे अमर्यादित हैं। लोकतंत्र में केवल निर्वाचित प्रतिनिधि ही सबकुछ नहीं हैं, संविधान में राज्यपाल और राष्ट्रपति के पद का प्रावधान इसलिए किया गया है, ताकि सरकारों को निरंकुश होने से रोका जा सके। उनकी भूमिका लोकतंत्र और संविधान की रक्षा करने के लिए ही है। हालांकि मुख्यमंत्री भगवंत मान के हवाले से पूछा गया है कि लोकतंत्र को करोड़ों लोगों के चुने हुए प्रतिनिधि चलाएंगे या केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया हुआ एक व्यक्ति। राज्यपाल को महज एक व्यक्ति कहना, इस संवैधानिक पद का अपमान है। आप वही दल है, जिसने अपनी स्थापना के समय लोकतांत्रिक मर्यादाओं की स्थापना की कसमें खाई थीं, हालांकि बाद के वर्षों में पार्टी की सरकारों के विवादित फैसले चर्चा में हैं। दिल्ली में शराब नीति को लेकर प्रवर्तन निदेशालय जांच कर रहा है। वहीं मोहल्ला क्लीनिक और मुफ्त बिजली पर भी सवाल उठ रहे हैं। पार्टी नेता हर स्टेज से मुफ्त देने की घोषणा कर रहे हैं, लेकिन उन घोषणाओं के लिए राशि कहां से आएगी या फिर उनकी उपयोगिता ही क्या है, इसका जिक्र नहीं कर रहे। इन बातों से पार्टी नेताओं की राजनीतिक भूख ज्यादा परिलक्षित हो रही है। आम आदमी पार्टी ने जनसेवा के नाम पर मुफ्त बांटने को सत्ता हासिल करने का जरिया बना लिया है। दूसरे दल भी यह कर रहे हैं, लेकिन जिस प्रकार से दिल्ली मॉडल के नाम पर विकास का दावा किया जा रहा है, वह राजस्व को हानि ज्यादा पहुंचा रहा है और जनता को मुफ्तखोरी की आदत भी लगवा रहा है।

पंजाब में ऑपरेशन लोटस जैसा कुछ हो भी रहा है, यह भी जांच का विषय है। बेशक, आप ने अपनी सरकार में डीजीपी के ऑफिस जाकर इस मामले की विजिलेंस जांच की मांग की है, जिसको लेकर भी प्रोटोकॉल तोडऩे का आप पर विपक्ष आरोप लगा रहा है। लेकिन अभी तक इस मामले में कुछ भी सामने नहीं आया है। भाजपा यह पूछ रही है कि आप विधायकों की खरीद फरोख्त के लिए 1375 करोड़ रुपये की नकदी भी आखिर कहां है, उसका भी पता नहीं लग सका। क्या विधायकों की खरीद उनके खातों में ऑनलाइन ट्रांजेक्शन करके की जाती? अगर ऐसा होता तो यह अब तक की किसी दल के विधायकों की सबसे ईमानदार खरीद फरोख्त होती। पंजाब में इस समय शिअद, भाजपा और कांग्रेस के सुर इस मामले में एक समान हो गए हैं। यह भी खूब है कि भाजपा एवं कांग्रेस की ओर से राज्यपाल को पत्र लिखकर इस विशेष सत्र बुलाने की जरूरत पर सवाल खड़े किए गए थे। इसके बाद राज्यपाल ने केंद्र सरकार के सहायक महाधिवक्ता से इस संबंध में राय ली गई, जिन्होंने ऐसे किसी प्रावधान से इनकार कर दिया। बताया गया है कि पंजाब विधानसभा की नियम एवं संचालन नियमावली के नियम (58) (1) के अनुसार ही सदन में अविश्वास प्रस्ताव पेश किया जा सकता है। नियमावली में विश्वासमत का प्रस्ताव लाने का कोई प्रावधान नहीं है। इसके अलावा विधानसभा के रूल्स ऑफ बिजनेस के चैप्टर 10 में केवल अविश्वास प्रस्ताव लाने का जिक्र है, जोकि विपक्ष के विधायक लाते हैं। इस प्रकरण के बाद संभव है कि आप सरकार आगामी किसी सत्र में यह क्लॉज जोडऩे का भी प्रस्ताव ले आए कि सरकार का मन अगर अपना विश्वास मत हासिल करने का हो तो वह यह ला सकती है। राज्यपाल तब इस पर अड़चन नहीं लगा पाएंगे।

हालांकि आप के इस आरोप पर विचार आवश्यक है कि क्या राज्यपाल कैबिनेट के फैसले को खारिज कर सकते हैं? अगर ऐसा होता है तो क्या इसे लोकतंत्र की आवाज को दबाना नहीं समझा जाएगा? हालांकि यह पूछना भी जरूरी है कि अगर राज्यपाल सरकार के हर फैसले का समर्थन करे तो फिर इससे सरकार निरंकुश हो जाएगी। राष्ट्रपति और राज्यपाल के पास संसद एवं विधानसभा में लिए गए फैसलों को रोकने और उन्हें पुनर्विचार के लिए वापस भेजने या फिर स्थाई समिति को उन पर विचार के लिए प्रेषित करने का अधिकार है। तब राज्यपाल ने वही किया जोकि विधानसभा की नियमावली में अंकित है। इसके बाद राज्यपाल पर जो आरोप लगाए जा रहे हैं, वे राजनीति से ही प्रेरित हैं। आम आदमी पार्टी सत्ता के लिए कुछ भी करेगी की तर्ज पर आखिर क्यों चल रही है। अगर वह जनता से वादे करके सत्ता में आई है तो उसे उन वादों को पूरा करने के लिए कार्यरत रहना चाहिए। अगर वह उन तमाम उम्मीदों पर खरी उतरी और वादे पूरे कर पाई तो फिर कोई भी पार्टी उसकी बराबरी नहीं कर पाएगी।